बोलिए न कुछ तो आप भी–नक्शे तो बोल रहा है

म सँग सामाजिक सञ्जालमा भारतका विभिन्न प्रदेशका लेखक,बुद्धिजिवि,प्राज्ञ,पूर्व सैनिक,पूर्व आइपीएस,स्वस्थ्य कर्मी,प्रकाशन संस्था,पत्रकार,शिक्षक,सोसल मेडीया,जनबगीय सङ्गठनका सदस्यहरु पनि जोडिनु भएको छ । नेपालबारे उहाँहरुलाई जे पढाइयो यदी त्यसमा उहाँहरुबाट भ्रमपूर्ण कुराहरु साझा हुन गए मैले यस्तो हैन यसो पो हो भनेर टिप्पणी गर्ने गरेको छु । नेपालको पक्षमा बोल्नेलाई भारतीय साशकले दुख दिन्छ कि भनेर पनि कतिले बुझ पचाएका हुन सक्छन् । हरिद्वार जाँदा बाटो भुलेर उत्तरा खण्डका पहाडी बासीहरु बसेको गाउँमा हामी पुगेर सोध्दा अरु कशैले पो देख्छ की हामीसँग भेटेको भनेर उनीहरु असाध्य डराएका थिए । त्यतिबेला मैले भारत माता कि जय भन्दै भारतको झण्डा छापिएको गम्छा तथा कुर्ता लाएर पहाडे चोर तराई छोड भनेर अरुले देखुन सुनून कुनै डर नमानी नेपालमा नारा लाएको,नेपालीहरु कै शालिक तोडेको सम्झेँ । यस सन्दर्भमा मैले अलिकति भएपनि कुरा बझ्न सहज होश भनेर हिन्दी भाषीहरुको लागि हिन्दीमा केही लेख्न खोजेको छु । नेपाल के राष्ट्रकवि माधव प्रसाद घिमिरे ने बहुत पहले लिखा था “पश्चिम मेँ किल्ला काँगडा और पूरव मेँ टिस्टा तक नेपाली पहुँचे थे,कोही भी शक्ति के सामने कभि भि वीर नेपाली नहीँ झुके थे”। दक्षिण मेँ गङ्गा के तट तक–दिल्ली के निकट तक–उत्तर मेँ भी लाह्शा तक नेपाली पहुँचे थे । नेपालमे अभियन्ता सब इस क्षेत्रफल का ‘बिशाल–ग्रेटर नेपाल’ नाम से सम्बोधित करती है । इसका नक्शा भी अभियन्ताओँ ने बनाया है । ग्रेटर नेपाल के पक्ष मेँ बोलने वालोँ की तर्क है की इशापूर्व ३५० पहले हि समुद्र गुप्त के शिलालेख मेँ नेपाल के नक्शे दक्षिण मेँ पाटलीपुत्र–पूर्व मेँ आशाम और पश्चिम मेँ पञ्जाव तक था । सम्राट अशोक ने २२०० बर्ष पहिले बुद्ध कि जनम यही पर हुवा लिखकर हाल के नेपाल कि लुम्बिनि मेँ अशोक स्तम्भ खडा किया । कौटील्य कि अर्थशास्त्र–चाणक्य की शास्त्रोँ मेँ भि नेपाल कि बिशालता कि बयान किया है । ०१ नोभेम्बर ई.सं.१८१४ मेँ जब इष्ट इण्डिया कम्पनि के जनरल हेष्टिङ्गस् ने पहलीबार नेपाल मेँ ५ जगह से आक्रमण कीया और ३ जगह नेपाल ने बिजयी किया । एशीया मेँ अंग्रेजो सवसे पहले नेपाल से पराजित हुवा ।
वीर बलभद्र और भक्ति थापा के बहादुरी के बावजुद अंग्रेजो कि तोपोँ और बारुद के आगे नेपाल की नालापानी मेँ पराजित और सुगौली सन्धी हुवा । लेकिन बिदेशी इतिहाशकारोँ ने नेपालको अभि भि गुमराह मेँ रखा है । नेपाल कि तत्कालिन प्रधानमन्त्री भिमशेन थापा ने पञ्जाव नरेशको एक प्रश्ताव रखा कि अगर पञ्जावि–मराठी–नेपाली सेना मिलकर लडेङ्गे तो सिर्फ भारत से हि नहीँ पुरे एशिया से अंग्रेजोको खदेड देङ्गे । लेकिन पञ्जाव नरेशके मन मेँ अगर वीर नेपाली फौज ने पञ्जाव को भि हडप लिया तो जैशा नकरात्मक विचार पनप लिया और यी तीनोँ राज्य ने बहुत खोया । इष्ट इण्डिया कम्पनि भि चाहता था कि ये तीनो ना मिले आखिर वही हुवा । ई.सं.१८५७ के विद्रोह दवाने के लिए नेपाल कि राणा सरकार कि प्रधानमन्त्री जङ्गबहादुर राण ने अंग्रेजो को सहयता किया । कुछ ईतिहाशकारोँ का कहना है कि अगर नेपाल ने फौज नभेजी होती तो इष्ट इण्डिया कम्पनि के कतई दाल गल्ने वाला नहीँ था । अंग्रेजो ने नेपाल के इस सहायता से खुश होकर लखनउ के उत्तर–क्षेत्र महाकाली–शारदा के पूर्व क्षत्रेके तीन जिल्ला कि जमिन नेपालको ई.सं १८६० मेँ वापश दीया ।

राजा के अनुरोध पर इससे पहले नेपाल के आज कि मध्य और पूर्वि तराई अंग्रेजो ने नेपाल को लौटा दीया । यह भी कहते है कि अंग्रेजो वापस जाने कि समय सुगौली सन्धि के पहले कि नेपाल कि भूभाग नेपाल को वापश करने कि मन उनका था । अंग्रेजो कि य सोच तार्किक था क्योँ कि जव भारत से वापस जाते समय जो सम्झौता भारत के साथ किया था उश मेँ स्पष्ट रुप से कहा गया है कि इस सम्झौता से पहले जितने भि इष्टइण्डिया कम्पनि ने सम्झौता किया है खारेज होगी । यसका मतलव यह हुवा कि सुगौली सन्धि भि खारेज होकर नेपाल के सिमा उश सन्धि के पहले जो था वही कायम होगी । अगर नेपाल सुगौलि सन्धी के पहले कि अपने भूभाग मागता था तो अंग्रेजो ने जरुर ग्रेटर नेपाल कि अंग्रेज के कब्जे कि जमिन नेपालको वापश देता था मगर तानाशाही एकतन्त्रीय राण शासन के साशकोँ ने वो क्षेत्र के जनसचेतना और जागरणसे अपना तख्त पलट होगी सोचकर और नेपालमे जनता राणशाही के खिलाफ बिद्रोह कि तयारी का मध्य नजर रखते हुए अंग्रेज से कोही माग नही रखा । आखिर गोवा भि तो वापश हुवा । बाद मँे नेपाल ने तिब्बत और बेलायती कालीन भारत से किया हुवा सन्धी के बाद से आजतक जो सिमा कायम हुवा उशमेँ चीन से कोही दिक्कत नहीँ है,सामान्य वार्ता से हल निकलती है । लेकिन अध्यन कर्ताओँ के अनुशार भारत ने ६२ हजार हेक्टर नेपाल के भूमि पर कब्जा किया है । भारत वार्ता पर कत हि गंभिर नहीँ होती है । २१ औं शताब्दी मेँ ८० बर्ष पहले पैदा हुवा एक बडा देश जो २०० बर्ष से भी पहले पैदा हुवा देश कि सिमाओँ कि बश मेँ करना अभि भि चाहता है दुख कि बात है । नेपाल ने शुक्रवार(०३ मई)को मैप के साथ १०० रुपये के नए नोट छापने का ऐलान किया । इन नोटोँ मेँ भारत के इलाकोँ–लिपुलेख,लिम्पियाधुरा और कालापानी को दिखाया गया है । ‘कैबिनेट ने २५ अप्रैल और ०२ मई को हुई कैबिनेट बैठकोँ के दौरान १०० रुपये के बैङ्क नोट को फिर से डिजाइन करने और बैङ्क नोट के बैक ग्राउण्ड मेँ छपे पुराने मैप को बदलने की मन्जूरी दे दी’,सूचना और सञ्चार मन्त्री रेखा शर्मा ने कहा”(आजतक । भारत । ०४ मई ई.सं.२०२४ तदानुशार २२ बैशाख वि.सं.२०८१) । नेपाल कि कालापानी–लिपुलेक–लिम्पियाधुरा सहित के नक्शा को नेपाली रुपैयाँ एक सौ मेँ रखने के मामले मेँ नेपाल सरकार कि निर्णय और केद्रीय बैङ्क कि भूमिका पर भारतीय विदेश मन्त्रालय ने असमति जताया । इससे पहले जव भारत के गुहमन्त्रालय ने काश्मिर को भी शामिल कर के नोभेम्बर ०३ ई.सं.२०१९ मेँ बिना बातचित नेपाल कि जमिन कालापानी क्षेत्र(लिपुलेक,लिम्पियाधुरा सहित)को भी शामिल कर के उशकोे अपने भूमि मानकर एक तरफ से नक्शे जारी किया फिर उशके बाद माननीय रक्षामन्त्री राजनाथसिंह ने ०८ मई ई.सं.२०२० मेँ भारत के उत्तराखण्ड कि पिथौरागढ और नेपाल ने अपने भूमि कहकर पहले से हि दावि किया हुवा लिपुलेक को जोड्नेवाला कैलाश मानसरोबर यात्रा सडक मार्ग का उदघाटन भी किया तो इश मामले पर विवाद छेडा ।
मई १५ मेँ नेपाल के राष्ट्रपति बिधादेवी भण्डारी ने बजेट के लिए नीति तथा कार्यक्रम के घोषणा के दौरान नेपाल अव नयाँ नक्शे प्रकाशित कर के सार्वजनिक करने कि बताई तो उशी दिन भारतीय सेनाध्यक्ष एमएम निर्वाणे ने गैर जिम्मेबार तरिके से किशी के इशारे पर नेपाल इस मामले को उछाल रहा है कह कर चिन कि ओर सङ्केत किया तो मामला और विगड गया । तव नेपाल मँे हि नहीँ बल्की बिश्व मँे भी सर्वप्रथम जन निर्वाचन के जरिए करिव दो तिहाई के बहुमत से ई.सं.२०१७ –बि.सं.२०७४ फागुन ०३ मेँ गठित दुर्लभ कम्युनिष्ट सरकार के प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली के कार्यकाल मेँ १८ मई ई.सं.२०२० के मन्त्रिपरिषद बैठक ने उत्तर पश्चिम् सिमा के गुन्जी,नावी और कुटी गावोँ को शामिल कर के नई अधिकारिक नक्शे का अनुमोदन किया था । संसद के करिव पूर्ण संख्या ने नये नक्शे को अनुमोदन भी किया था । उश वक्त प्रम ओलीजी ने–किशि भी देशकी सार्वभौमसत्ता और अखण्डता कि मूल्य और मान्यता उश कि भौगोलिक आकार से निर्धारित नहीँ होती है न उश कि आकार से बडा देश वा छोटा देश कहलायगी और भारत को सिंहमेव जयते मेँ नहीँ बल्की सत्यमेव जयते के पथपर चलना होगा कहदिया था तो विवाद और बहश छिड् गया था ।

संहमेव जयते शव्दपर भारत ने आपति भी जताई थी । उश समय मेँ नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी एकिकृत माक्र्शबादी लेनिनबादी और नेकपा माओबादी केन्द्र कि एकता होनेपर एक नयाँ नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी बना हुवा था और यही एकता कि बल से अत्यधिक बहुमत भी हासिल हुवा था बामपन्थिओँ का । नेकपा केन्द्रीय समिति के बैठक ने नई नक्शा तयार कि प्रश्तावको अनुमोदन कर के अपनी पार्टी कि सरकार को नई नक्शा जारी करने के लिए अनुरोध भी किया था । नेपाल के नई नक्शे मेँ शामिल विवादित भूभाग के विकल्प मेँ भारत और बङ्गलादेश के बिच हुवा जमिन विनिमय जैशे बात मेँ भी बहश चल रही है । जैशे नेपाल के विवादित पश्चिम सिमा के भूभाग के बदले नेपाल कि समुद्र तट से सबसे नजदिक का पुरव सिमा मेँ बराबर क्षेत्रफल जमिन नेपाल को उपलब्ध कराने कि बात ।
जब कि ये नई नक्शे नेपाल कि अपनी आन्तरिक मामला था । ये नक्शे विवादित होने कि कोही गुञ्जायस ही नही है । ये नक्शे ब्रिटिश कालिन भारत और नेपाल के बिच ई.सं.१८१६ मेँ हुवा सुगौली सन्धी के बाद स्वीकार किया हुवा और अन्तराष्ट्रिय स्तर पर यही नक्शा के तौर पर नेपाल को एक कभी पराधिन अर्थात कभी किशि के उपनिवेश नही रहा देश कि भी मान्यता दिया हुवा यथार्थ अधिकारिक नक्शा है । भारत के बुद्धिजिवि बहुत अध्यनशील है । लेकिन कभि कभि सामाजिक सञ्जाल मेँ लिखते है कि बुद्ध के भारत मेँ जन्म हुवा था । इस तरह कुछ समाचारोँ जैशे नेपाल ने भारत कि जमिन कब्जा मेँ लिया है । यी दोनो बात जब प्राज्ञ के हात से टाइप कर के साझा होती है तो मुझे उदेक लगता है । भारत ने कृत्रिम लुम्बिनि निर्माण कर के बिदेशीयोँ कि अलावा खुद अपने देशबाशियोँ को भी गुमराह कर रही है । नेपाल के लुम्बिनी अन्तराष्ट्रिय विमानस्थल मेँ अवतरण खातिर भारत के हवाईमार्ग प्रयोग करने के लिए बिदेशी बिमान कम्पनीयोँ को इजाजत भी नही देता । उनको यह डर है कि उसने जो नकली लुम्बिनी तयार किया है उस के विमानस्थल पर अशर पडेगी । भारतके लिए तिव्वत प्रवेशका सब से सहज और कम दुरी कि कालापानि क्षेत्र का मामला भि इस तरह के है । जव भारत चीन कि बिच ई.सं. १९६२ मेँ युद्ध हुवा तो युद्ध थमने के बाद कुछ जगह पर भारत के सेना कैम्प बनाकर रहने लगे । १९६८ मेँ सब कैम्प से भारतीय सेना वापस गये । लेकिन कालापानी मेँ सेना कि वटालियन ठहर गया । उश बक्त नेपाल के राजा महेन्द्र ने सेना अपने देश भारत लोटेङ्गे सोचकर कुछ दिन के लिए ठहरने दिया तो उँगली दिया तो बाहो को ही निगलने लगा–आश्रय दिया तो शरपर चढ्ने जैशा व्यवहार भारत ने किया और जाएङ्गे जाएङ्गे कहकर सदा के लिए कब्जा करने कि कुनियत रखा । अपनी पडोशी है युद्ध कि घाउ है जरुर जाएङ्गे सोचकर नेपालीयोँ ने धर्य रखा । ६० वर्ष पहिले उश बक्त के नक्शे प्रमाण है । लेकिन भारत ने वापश कालापानी से सेना लौटाने से इन्कार कर के अभितक कब्जा हि जमालिया । वार्ता करनेको दिलचस्पि नहीँ दिखाता है । भारतीय दस्तावेज मेँ लिम्पियाधुरा नेपाल के है । इसपर कोही औपचारिक सम्झौता नही हुवा । अन्तराष्ट्रिय कानून के अनुसार कोही भी देश नयाँ नक्शा प्रकाशित करता है तो पडोशि से सल्लाह करना जरूरी होता है,लेकिन भारत ने नेपालके ३७२ वर्ग किमी से ज्यादा कालापानी–लिपुलेक–लिम्पियाधुराका भूभाग अपने नई नक्से मेँ शामिल किया । चीन और भारत के बीच मे इस क्षेत्रको लेकर जो सम्झौता हुवा उसपर नेपाल के तत्कालीन प्रम सुशील प्रसाद कोइराला ने चीन और भारत को बिमति जताकर पत्राचार किया,चीन ने गलती हुवा कहकर स्वीकार किया लेकिन भारत ने कोही जवाव नहीँ दिया,ईसपर नेपाल ने दो बार पत्र लिखा लेकिन भारत ने कोही जवाव नहीँ दिया । नेपाल के पास पूरा दस्तावेज है”(डा.रमेश ढुङ्गेल,इतिहाश बिद्–राजनीतिक और कुटनीतिक बिष्लेशक,नेपाल,२२ मे ई.सं.२०२०,सगरमाथा टेलिभिजन) । भारत और नेपाल कि बिच रोटी बेटी के सम्बन्ध है जैसा कथन भी अव सिर्फ कहने कि बात रह गई है । भारतीय जनता और नेपाल के जनता के बिच कि प्रगाढ,समधुर सम्बन्ध पर कभि जितनी समय सत्ता मेँ रहेङ्गे भारतको खुश करना है,भारतीय साशक खुश होनेपर सत्ता प्राप्त होङ्गे तो कभि दुशरा समश्या दिखा के सत्ताके निरन्तरता के लिए भारत से मोलमोलाई जैशा सोच बनाने वाले नेपाली राजनीतिक दल के नेताओँ का रवैया ओर भारतीय नेताओँ और नोकरशाहोँ का भि नेपाल पर वही बेलायत कालीन औपनिबेशिक रुख अपनाने से नाकाबन्दी लगायत और भि नकारात्मक सोच बनाकर आँच पहूँच रहि है । टनकपुर बाँध सम्बद्ध महाकाली–शारदा नदी सन्धिको लेकर नेपाल मेँ बहुत विवाद हुवा । नेपाली जनता यस के पक्ष मेँ नहीँ थे तो भि दोनो देश कि हित होगी सोचकर तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व.गिरिजाप्रसादकोइराला,नेपालके नेकपा एमाले नेता माधव कुमार नेपाल और केपी शर्मा ओलि ने समर्थन किया । इस सन्धि कि बजह से एमाले मेँ बिभाजन होकर सीपी मैनालीजी के नेतृत्व मेँ बामदेव गौतम,राजेन्द्र श्रेष्ठ सहित नेकपा माले पार्टी बन गया । लेकिन जव भारत ने इस सन्धिको क्रियान्वयन मेँ दिलचस्पि नहीँ रखा तो मालुम हुवा कि नेपाल सिर्फ भारत से हि विकाश सम्झौता करे किसि दुसरे देश से सम्झौता न करे जैसा सोच बनाकर काम नहीँ सिर्फ कब्जा करना चाहता है तो बाद मेँ गिरिजाप्रसादजी को अहसाश हुवा कि महाकाली सन्धि करना एक भूल था और उन हो ने कालापानी सम्बन्ध मेँ भारत से वार्ता कर ने कि वात कह दिया । लेकिन एक अलग बात भी सुन्ने मेँ आया है कि नेपाल के लोकप्रिय मनमोहन अधिकारी कि एमाले के सरकार गिराने के लिए अमेरिका और भारत ने गिरिजाप्रसाद को प्रधानमन्त्री बनाने कि डिजाइन बनाया हुवा था । लेकिन बाद मेँ उन्होनेँ शेर बहादुर देउवाको प्रधानमन्त्री बनाया तो गिरिजाप्रसाद गुस्से मेँ आकर कालापानी कि बात वाला सन्दर्भ को उठाया । इसका कोही अधिकारिक आधार नहीँ होने शे य गिरिजाप्रसाद कोइराला के बिरोध मेँ जान बुझकर रचा हुवा एक अफवाह हो सकता है । एमाले नेता मदन भण्डारी,नेपाल मजदुर किशान पाटीके नेता नारायण मान बिजुक्छे रोहित,नेकपा माओबादीके नेता पुष्पकमल दाहाल प्रचण्ड–मोहन बैध–सीपी गजुरेल गौरव ने तो पहले से खुव बिरोध किया,महाकालि सन्धि के तीन बरस पहले हि मदन भण्डारी के एक विवादस्पद दुर्घटना मेँ देहाबशन हो गया था । देशभक्त राजा वीरेन्द्र भि मारे गये । नेपाल जैशा पडोशी दुनिया मेँ मुश्किल से हिँ मिलेगा जैशा आवाज बुलन्द कर के अव दोनो पडोशी राष्ट्र कि जनता मिलकर नेपाल के वर्तमान और भारत कि अव आनेवाली नये सरकार पर दवाव डालना होगा । ‘कालापानीको कथा–व्यथा’ शीर्षक मँे मैने बि.सं.२०७६ कार्तिक २५ गते(तारिख) के दिन नेपाल के साँघु साप्ताहिक प्रिन्ट संस्करण मेँ लेख प्रकाशित किया था । कालापानी के मामले मेँ सामाजिक सञ्जाल मेँ कुछ नयाँ तथ्यका बिम्बको साझा हुवा तो मुझे हिन्दी मेँ ‘बोलिए न कुछ तो आप भी’ शीर्षक मेँ काव्यकथा भि लिखने का चाहत हुवा ।
मेची के उस–पार जहाँ हम ने तरबूजा बोई और काटे थे
वह भि अपना और महेशपुर सुस्ता भि तो है ।
नेपाल के है कालापानी–लिम्पयाधुरा–लिपुलेक प्रमाण नेपाल मेँ है
प्रमाण मेँ कोही द्विविधा नही,देशभक्त विस्वस्त है ।
अपनी हि देश कि भूभागका ब्यापार कर के
सत्ता प्राप्ति कि सौख पालने वाला नेपाल कि वह
कौन–कौन शख्स है ?
कहिए न आप भि,बोलिए न कुछ तो आप भि
कालापानी–लिम्पयाधुरा और मेची के उश पार भि तो बोल रहा है
सच कहुँ क्या आपका मुह कोही ताला लगा हुवा बक्सा है ?
विकृतियोँ,विसङ्गतियोँ और राष्ट्रघात के बात करते हि क्योँ आप के घवराहट
चेहरे मेँ प्रष्ट दिखता है कि आप के लाचारी
के अन्दर सार्वभौमसत्ता खण्डित नेपाल के सात प्रदेशरुपि नक्शे है !
गङ्गा,कोशी,बागमती,काली गण्डकीको जल जस्तै देश भित्र कै खलनायकहरुले अपवित्र पार्न खोजे पनि आस्था र बिश्वासले शुद्ध तथा पवित्र ठाने जस्तैगरी नेपाल भारतको मित्रताले शान्तिको लागि बुद्ध भइदिनु पर्छ । भारतीय सहित्य लेखिका ऋचा बर्मा बुद्ध जयन्तीको उपलक्ष्यमा आफ्नो सामाजिक सञ्जालको भित्तामा यस्तो लेख्नु हुन्छ–“अलिकति कम भएपनि बुद्ध हुनुपर्छ । थोरै भएपनि हृदय देखि नै शुद्ध हुनुपर्छ”(ऋचा वर्मा) ।।
(प्रतीकात्मक छविचित्र श्रेय ः लिम्पयाधुराको अन्तिम गाँऊ बन्धु कोइरालाको सामाजिक सञ्जालको भित्ताबाट,१९ फागुन बि.सं.२०८० । सय रुपैयाँको नोट र नेपालको नयाँ नक्शा लेखक स्वयंबाट ।
ग्रेटर नेपाल इन क्वेष्ट अफ बाउण्डरी नक्शा,पेट्रीओटिक नेपाली फुल मुभी बाइ मनोज पण्डित–हाईलाटस नेपाल यूटुब,०३ अगष्ट ई.सं.२०१६ । कालापानीको सम्बन्धमा डिष्ट्रिक गजेटियर्शको गोलो रातोले घेरेको र नेपालको नयाँ भाग समेटिएको नक्शाको सानो अंश पुराना बरिष्ठ पत्रकार किशोर श्रेष्ठको सामाजिक सञ्जालको भित्ताबाट ०७ जेष्ठ बि.स.२०८१ । सबै बिम्वहरुको कलात्मकरुपमा सन्धिगरेर सहयोग गर्नुहुने–श्री अरुण भण्डारी,अंग्रेजी शिक्षक,श्रम राष्ट्रिय मावि,काठमाडौँ वार्ड नं.७) ।

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